एकटा बिर्रो उठल मुन्हारि साँझमे आ समुद्रक फुहारक टुकड़ी चिप्पी दऽ जुड़ि रहल टूटल लय रेतमे सीअल जतऽ ठाढ़ ओतऽ सँ हम देखै छी नीचाँ दिस केना लहरिक गरदनि टूटैए टक्करसँ आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ। हम ओकर सभक कुहरनाइ आ मरबा कालक निसाँस सुनै छी आ दुखक अनुभूति नै कऽ सकबाक- नीके अछि, जँ अहाँकेँ ओतेक तेजीसँ भागबाक अछि, एड़ लगाउ, अवरोधकेँ तोड़ू घेंट बढ़ा कऽ जितबाले, अहाँ ओकर तोड़ि देबै। आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ। मर्र, भाग्यक झबराएल केश पन्ना सन उज्जर! मृत्युक सम्मुखो लालित्यसँ पूर्ण, लहरि ओकर पएरपर उड़ैत जेना युद्धक दुन्दभी करैए अनुनय-विनय- आ तोड़ैए ओकर सभक वक्र गरदनि जेना-जेना ओ बढ़ै छथि आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ। फेनाएल लहरिक शिखर बिर्रोसँ टकड़ाइए एक बेर फेरसँ जइसँ फेनक जबड़ल केश लहराइए; लहरि देवारकेँ फांगि नै सकैए, बुलबुल्लाक घोड़ा झखाइए आ खसैए, ओकर पएर झगड़ामे फेका जाइए। आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ। तखन पाछाँसँ आगाँ रहब हमरा धकियाएल जाइए जेना चक्रवातमे उड़ैत होइ कात धरि जाधरि हमर माथमे एकटा बोखार सन अनुभव कहैए हम छी सेहो स्रापित अपन गरदनि आ रीढ़क हड्डीकेँ तोड़ेबा लेल। आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ। से जेना सालक साल बीतल बहुत गोटे किनारमे बैसि आ ओतऽ सुरक्षित देखि, ध्यानसँ, गरुड़ दृष्टि संगमे, केना दोसर झखाइ छथि लगपास अपन गरदनि आ रीढ़क हड्डी तोड़ैत ओइ पाथरपर। आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ। मुदा महासागरक दुखी तलपर, जतऽ ह्वेल रहैए गुप्त तरहड़िमे, एकटा लहरि हमर ज्ञानक सीमासँ बाहर लैए जन्म उठैले आ घेरैले तटकेँ ताधरि जाधरि जे देखि रहल छथि एकरा गीरि नै लेल जाइ छथि। आ हम असहाय अनुभव करै छी ओकर मुइलापर छोट सन- आ ओत्तेक ऊपरसँ।
© Gajendra Thakur. Translation, 2015