"अफ्रीकी सवाना" रूप ओलंखीज़तरैं लाल-पीली होवती जमी मावे कोंना की क्षजोगतो हूण-दिहूणी घव्यो है जिस्वै । घणा पाप कर वुक्या हां जिगारै कारण आ बाढ आई - कोई बोलते हो, विकारों क्षर जवान जिराफ मनगत पस्कासी - न्हें अटे है ठीक हां / दलैई नीं जावां! धरती धूजी, रोजा- क्या री ठा नीं किली क्षस्वाज़रे कानों गूंजी फगत जेफ बूढी उपदान सूवटिवो जारी जावै बैव्यो है ऊंची आवाज में बोल्पी - "जिराफ बडो है क्षर दो बली जारी!" - "नसल से भेदभाव हटाओ!" जोश में बटबटीज़तो जिराफ जारी उकठतो दाकल्पी - "बरोबरो से मौको आज रो नवो फेशन है!" तद 'हैं है होठद्दे रो मष्टारो "रुटकारो दिवो - "ते नेनकडी जिराफणी जारी जूबै टोले में नींरेदै तो है जेक घडी है नीं ठहखे अटे!" धरती काँपी, रोकां क्या री ठा नीं किली क्षावाजां कानांरै पार गई बूढी ऊरमावान सूवटिवो जारी क्षालै बैव्यो है ऊंची आवाज में विरक्तावो ज़रामैं- "जिराफ बडो है क्षर दो बली जारी!" "र बेली! जिराफ ने चिंकारा! किरपा करो ने म्हारी भावना ने क्षादरो । क्षापां जाणों के क्षापणी नसल साव निरबाठी है क्षर फ्तात जान बचाक्या ने भस्म नीं सकी ।" पाग वे बैनकिया भले टतकिया - "धणी मानती थारी सलाह न्हें.." क्षर जाय लेवे शरण क्षापौ भायले जंगार्द्धरे सांडरै डेरै । धरती बूंदों, रोकां क्या री ठा नीं किस्तों क्षावाजां पसरी बूढीयो उपदान सूवटिवो क्षापौ क्षालै बैठवो है गठफाड़ आवाज में बोस्यों - "जिराफ बडो है क्षर दो बली जारी!" पीलीक्वें तपती जमी सवाना में क्षब नोंरैयी शांति, नीं है दिखे हाँरेयालो पान, जिराफणी क्षर उपरि जोड़गृयत री क्षरेख्या देवै फगत क्षमलिया आँसू- धार! छप्पर मांय लूं दीखती दिठाव साव क्षजोगतो-जपरोगो माडी हो, छोटकडी खुर लूं खुर मिलावती ज़ररैयी ही जंगली सांड सामैं बांते छोड़' र । क्या जिराफ ने र्वीदेय सकां दोस ओ कोई और ही है, ज़रामूं जाने बी, जिकों जापरै क्षालै बैव्यो चिस्लादै हो - "जिराफ बडो है क्षर दो बली जारी!"
© रीरि पुरीहित. उल्थणहार, 2015